Posted by: serial June 2, 2010
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अप्ने हिस्से की जिन्दगी तो हम कब्के जी चुके,
अब तो सिर्फ धड्कनों का लिहाज कर्ते है,
क्या करे इस दुनियाँ वालो का,
आँखरी धड्कनों पे भी एत्राज कर्ते है।।।।। है।।।।।