Posted by: Madness January 18, 2010
चौतारी-१७२
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जे राम जि कि।


उ पशुप्ती दर्शन हमि भि किएथियो काठमाडुमे। बाप रे बाप, बहुते कडाकेको ठण्ड थियो और ऊ मा हमरो लुङ्गिसे निचेबाट बहुते जोरको ठण्डि उपरको आवँथियो, सुसरा पुरे बदनवापे झुरझुरि लगाईके। फिर भि हमि धारमिक आदमि छु, ऊ शिब् के दर्शन वर्शन कियो और सुसरा जैसन हमि पशुप्तीसे बाहिरको आयो, हमरो बाटाके सैन्डलवा गायब! हमि बहुते ढुँढ्यो पर भेँटेन, उपर से ठण्डके मारे हमरो हलवा टाइट होनेको थियो। बाइदमे हमि गोसाला पे पुरि तकारी खानेको गियो, त हमि देख्यो कि एकजना दाजु बिलकुल हमरो जैसन सैन्डलवा लगाएको। हमि सोध्यो कि तपाइँ यो सैन्डलवा किधरसे खरिद कियो, उ ऊ हमको सर से पावँ तक देख्यो और मुह बिचकाईके भन्यो कि- " त्यो पशुपतीको बाहिर बाट तेरो चोरेर ल्याएको, के गर्न सक्छस् गर्!" बाप रे हमि त सिरफ पुछेथियो थोडै हमि चोर भनेथियो उ दाजुको, बहुते गुस्सा कियो। और हमि जान है तो जहान है भन्दै हुवाँसे बाहिर आयो और एक्टा दुकानसे हाथिके छाप वाला चपल खरिदके गियो।

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