Posted by: ritthe November 3, 2009
~ चौतारी १६२ ~
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बुढै बुढाहरु रैछन् ! बुढाहरुको खालमा त के बसाइ भो र


 


अब्बे हर्के रंगिला भुइमे खसा हुवा मेवा कि तरह क्युँ मुह लट्का के बैठा है चल् चल् धन्दा के टेम पे कोइ उपर निचा नही मांगता अप्पुन !

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