रिठे काणा- "गन्नुभाई गन्नुभाई!"
गन्नुभई- "अबे भुतनिके, काहे कु परकटे कबुतरके माफिक फडफडारेला है? तेरा टेँटुवा दबगया रे क्या?"
रिठे काणा- " नक्को भाई, वो बोले तो आजकल अख्खि चौतारी भुतमहलके माफिक होरेला है?"
गन्नुभाई- "काहे कु रे? उधरको तो सब टपोरि लोग सु्ब्बो से लेकरके शामतक मिमियारेला होता था!"
रिठे काणा- "वहिच बोला भाई अपुन,लगता है चौतारीके लोग चौतारीसे उबगेला है!"
गन्नुभाई- "उब काहेको गेला? वो सब टपोरि लोग, दीप हठेला, राहुल रंगोली, हर्के रंगिला, बिर्खे हठेला, सन्नोबाई, बन्नोबाई, भगुतभाई भाडगोडे, पुन्टे पेजर सब्के सब खिसकगेला है क्या?"
रिठे काणा- "मालुम नक्को भाई! वो दीप हठेला बोले तो कोइ शुभेक्षा करके छोकरीके पिछ्छु भागरेला था!"
गन्नुभाई- "पिछ्छु भागरेला था? अबे बिन तेलके दिया, वो हठेला तो आईटम लोगको अपने पिछ्छु भगाता था, कब से आइटमके पिछ्छु भागनेको लगा?"
रिठे काणा- "भाई वो जबसे कोइ शब्बो करके छोकरी उसको चकमा देके भागगेलि न हाँ वहिच दिन से बोले तो देवदासके माफिक दाढिवाडि उगाके बैठेला था,बादमे कोई बाङ्गे बनवाडि करके छोकराके साथ छोकरिके पिछ्छु भागनेको लगा!"
गन्नुभाई- "अब ये बाङ्गे बनवाडि किधरसे टपका?"
रिठे काणा- "मालुम नक्को भाई, पन अपुनको लगता है कि वहिच एक छोकरा है जो अपुनका भि कोइ आइटमके साथ सेटिङ कर सकता है हेँख हेँख हेँख!"
गन्नुभाई- "अबे काहेकु हंडि जैसन थोबडेपे सफेद बत्तिसि दिखारेला है, तेरे इस जनममे तो मेरे कु नक्को लगता कि कोइ आइटमसे सेटिङ हो सकति है! अबे भुतनिके कब्बि कब्बि आईना भि देखनेको मांगता, कन्फुज होता हैन, जब साला शदाशिब अमरापुरकर अपनेको सलमान खान समझने लगता है हेँख हेँख हेँख!"
रिठे काणा- " भाई आप भि न!"
गन्नुभाई- "अछ्छा बोल,वो पुन्टे पेजर किधरको चम्पत हो गेला, कहिँ अपनिइच माथेपे फिसलके गिरगेला क्या? हेँख हेँख हेँख?"
रिठे काणा- " भाई वो कोइ बोलरेला था कि, पुन्टे पेजर आपके बाप बोले तो शंकरियाके खोलि कैलाशपे गएला है!"
गन्नुभाई- "शंकरियाके खोलिपे काहे कु रे?"
रिठे काणा- "भाई वो पुन्टेको कोइ भगुतभाई भाडगोडे करके बोलेरेला था कि, शंकरियाको एक चिलम देनेका और शंकरियाके लाम्बे बाल काटके पुन्टेके सरपे गाडनेका!"
गन्नुभाई-"अबे खालि हन्डिपे अटके हुवे अकेला चावल,वो उजडा चमनके सरपे अपुनके बापका बाल रखनेका आईडिया दिया वो भगुतभाई नासपिटे?"
रिठे काणा- " बरोबर भाई, और वो बोला कि शंकरियाके बाल रखनेसे पुन्टेके आगे गन्नुभाई भि भिखारिके माफिक लगेंगा!"
गन्नुभाई- "वैसा बोला वो छुछन्दरकि दुम अपुन को?"
रिठे काणा- " बिलकुल वैसाइच बोला बाप!"
गन्नुभाई- "चल बे भुतनिके तु घोडा और गाडि निकाल!"
रिठे काणा- " काहे कु भाई?"
गन्नुभाई- " काहे कु? तु काहेकु करके पुछा अपुनको? अबे वो भगुतियाका गेम बजानेकु और काहे कु?"
रिठे काणा- "पन भाई वो मिलेंगा तो सहि?"
गन्नुभाई- "अबे पानिपतके मेलेपे किचडपे गिरे शराबी, वो मिलेंगा काहे कु नहि?"
रिठे काणा- "भाई वो भगुतभाई तो शादी बनाके देवदास बनके कहिँ छुपेला है?"
गन्नुभाई- "अबे गिरे हुवे कटोरीसे बिखरे हुवे दुध, शादि बानाके कोइ देवदास होएंगा क्या?"
रिठे काणा- "पन वो होगेला है!"
गन्नुभाई- "अबे.....छोड बेकारमे माथापच्चि नक्को करनेका, हो गेला तो हो गेला अपुनका कोइ लेनादेना नहि, तु बस मालुम कर कि कहाँ छुपेला है वो टमाटरके आखिरि दाने, अपुन पेले उसका गेम बजाएंगा, बादमे वो पुन्टे पेजरका आँखके उपरका बाल भि नोचके रखेंगा!....अबे टकटकि बाँधके क्या देखरेला है, जल्दि से गाडि निकाल!"
रिठे काणा- "ज् जी भाई!"
जदौ!