Posted by: norton March 10, 2009
~* चौतारी १४२ *~
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जान्की हम्रो बिहाने फुन्वा कर्यो ओर बोल्यो कि आज उ घरमे एक्ले छ। हमिले पनि हिम्मत कर्के पुछ्यो कि "के म आइ लिउ तिम्रो हिँया?" ससुरी शर्माइके बोल्छ कि, "आउने को मन करेछ त पुछने को पर्देन, आइ हाल"। उ सुनिके हम्रो दिल बहुते जोर से धडक्यो। अस्नान उस्नान कर्यो, आइना मे देइख के मुछ मिलाये, बाँडी फुलाइके भि देखेँ, मन मने सोँचे कि सला हमी बहुते हैन्ड्सम छु। नयाँ कमिज ओर कुर्ता पहिन्के इक बार फेरी आइना देखे ओर कपाडमे डाबाँर के तेल डाले। साइकल चलाऊदे, सिठी मार्दे पहुचे उस्को आगन मे। साइकल को  अस्ट्यान्ड लगाइके दर्वाजाके तरफ जाँदे थिए, हँ, ससुरा पिछ्वाडे से कोही दोडदे आयो ओर बाल्टी भरीके पानी, गोबर ओर कथी कथी के मिक्स्वा हम्रो देहमा डाल दियो। बहुते घुस्सा आयो, हाँथ उठाइके मार्नेको लागेथे उ आदमी को, भितर से जान्की, उस्के भौजी ओर भौजीके बेटा हँस्दे बाहिर निकल्के भन्छ कि "होली हे"। सला जान्की के चक्करमे यादे भएन कि आइज होली छ। खेँ खेँ खेँ


सबहीको होली के शुभकाम्ना बोलेछु।   

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