Posted by: तिका: November 4, 2008
नेपाल सम्बत हाइ हाइ .......
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चोर भैया,
बाहुनबाद ने नेपाली भाषा = खस भाषा बनानेको बहूत कोशीस किया, लेकिन सफल नहि हुआ है । अगर सफल होगा होता तो यह सवाल कोइ भि नहिँ पुछपाएगा । क्यूँ नेपाली भाषा = खस भाषा होता है ? क्युँ नेपाली भाषा = थारु भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = तमाङ भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = गुरुङ भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = मगर भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = लिम्बु भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = नेवार भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = भोजपुरी भाषा हो नहि सकता है ? क्युँ नेपाली भाषा = मैथिल भाषा हो नहि सकता है ?

आपको लगता है कि सारा संसार नेपाली भाषा = खस भाषा मानता है, लेकिन वह आपका गलतफहमी है । वास्तवमै सारा संसार पुछ रहे है कि क्युँ नेपाली भाषा ने नेपाल के सभि भाषाओँको सहभागि होने नहि देता हे । नेपालके अन्तर्राष्ट्र पहिचान बनानेवाला नेपाल सम्बत क्यूँ नेपालमे प्रयोग नहि किया जाता है ? ऐसा बहुत सारे उत्सुकताएँ है, जो सारा संसार जवाब चाहते है ।

आपको शायद मालुम नहि है, लेकिन मै बता दुँ आपको - खस भाषाको नेपाली भाषा कहेने से पहेले गोर्खाभाषा था उसका नाम । क्युँ कि वह समय गोर्खा एक बलवान राज्य बनचुका था । खस लोगोँ ने उसिके फायदा उठाकर खस भाषाको गोर्खा भाषा बनादिया । आप दार्जिलिङसे देहरादुन तक जो भि खस भाषा बोलाजाता है, वहाँ नेपाली भाषा नहि गोर्खा भाषा मानाजाता है । धरणिधर कोइराला और पारीजातको आप नेपाली साहित्यकार मानते है, उधर वह गोर्खाली साहित्यकार बनबैठा है । वहिँ से प्रभावित होकर खसभाषाको पहेला पत्रिका कि नाम हि गोर्खापत्र रखदिया, बाद मै उसमे संशोधन करके गोरखापत्र बनादिया ।

गोर्खा राज्य शक्तिशाली होने से पहेले पर्वत राज्य शक्तिशाली था । उस समय खस भाषाको पर्वते भाषा का नाम दिया गया । जब पर्वत कमजोर होने लगा और गोर्खा शक्तिशाली बनगया उन्होने पर्वते भाषासे नाम चेञ्ज कर्के गोर्खा भाषा बनादिया । काठमाण्डु विजय करने के बाद शाह राजाओं गोरखाको परित्याग करके देशका नाम हि नेपाल रखदिया । वह वास्तवमे अजीवसा निर्णय था । इसका वरोवर ऐसा होगा कि अम्रिका ने इराक पर विजय पानेके बाद अम्रिकाका नाम हि इराक रखना जैसा । पृथ्विनारायणको शायद नेपाल सभ्यता और गरीमा के वरोवर गोरखा कि गरीमा ना होने से लघुताभाष था । बादमेँ भि खस भाषाको नेपालमे गोर्खा भाषा हि मानाजाता था । मदनपुरस्कार पुस्तकालय जाकर अध्ययन किजिए आपको मालुम पडजायेगा । लेकिन १९९० के दशक के बाद खस भाषाको धिरे धिरे से नेपाली भाषा कहेना शुरु होगया । पञ्चायत काल मै महेन्द्र राजा ने खसभाषा के विकास के लिए बहुत सहयोग किया । खस साहित्यकार लक्ष्मिप्रसाद, लेखनाथ आचार्य, बालकृष्ण सम जैसा लोगोंका बडेबडे पुरस्कार देना, और महाकवि, कविशिरोमणि जैसा विभिन्न पदसे सम्मान कर्ना और रेडियो और पत्रिकामेँ ब्यापक प्रचार कर्ना यह सव एकसाथ करदिया गया । पञ्चायत ने हि खस भाषाकि पहिचान नेपाली भाषा बनाया और पञ्चायति शिक्षाके माध्यमसे ढेरसारे जनताओकि दिमागसे खस शव्द हि मिटानेका कोशीस कियागया । मतलव यह है कि नाम परिवर्तनका सिलसिला ऐसा रहा
खस भाषा = पर्वते भाषा - जव पर्वतका शक्ति हावि था ।
खस भाषा = गोर्खा भाषा - जव गोर्खाका शक्ति हाविथा ।
खस भाषा = नेपाली भाषा - जव नेपालका शक्ति हावि था ।

भाषाओका नाम वारवार परिवर्तन हो नहि सकता, लेकिन शक्ति और प्रभावकि पिछे भागते भागते ऐसा करके खस भाषा ने वेश्या के चरीत्र दिखाया है । इतिहास मै हमारा थरुहट राज्य था, बाद मे नहि रहा, उधर मिथिलाञ्चल था, वह भि नहि रहा, अवधका साम्राज्य था, वह भि नहि रहा, हमारा इलाका मै इतिहासमै राज्य और सिमाना परिवर्तन बहुत बार हुआ है, लेकिन हमारा भाषाका नाम परिवर्तन कभि नहि हुआ है ।

मुझे तो लगता है, अगर नेपालका सिमाना कुछ भि तरह से भारतके अन्दर जायेगा तो यह खस भाषा के नाम फिर से परिवर्तन होकर भारती भाषा हो जायेगा । अर्थात
खस भाषा = भारती भाषा - जव भारतका शक्ति हावि होगा ।

अगर आप यह होने से रोकना चाहेँगे तो आपके पास बहुत सारी जिम्मेदारियाँ है । उसमै से पहेला जिम्मेदारी यहि है कि आप खस भाषा को खस भाषा हि बोलिए, जबर्जस्ति खस भाषा = नेपाली भाषा मत कहिएगा ।

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