Posted by: Birkhe_Maila July 2, 2008
~चौतारी १२१~
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दामी छ ठूल्दाई!

आज कताबाट पुरानो घाऊ बल्झेछ दाईलाई फेरि???  इलाहाबादको सडकको याद आयो जस्तो छ

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बिषेश अनुरोधमा बोनस सिन ""पुन्टे बुढा (लोग्नेमान्छे) ले नुहाएको""  पर्सि सम्ममा ल्याउने जमर्कोमा छु।

धन्यवाद्!

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