Posted by: Birkhe_Maila June 3, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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रिठे काणा- (हाँफता हुँवा) "गन्नुभाई गन्नुभाई!"

गन्नुभाई- " अबे काहे कु मरते हुवे कुत्तेकि माफिक हाँफरेला है?"

रिठे काणा- " भाई वो अपुनका सैरियल लंगडा है न भाई, बोले तो बडा आदमि बनगेला है!"

गन्नुभाई- "क्या बोला तु? अपुन से भि बडा बनगेला है क्या?"

रिठे काणा- (दाँत दिखाते हुवे) " नहिँ भाई आपसे बडा बनके उसको जिन्दा नहिँ रहनेका है क्या?"

गन्नुभाई- "हाँ अब ठिक है, बोल् किता बडा बनगेला है वो बिना गोटिके कैरम?"

रिठे काणा- " भाई वो रस करके रंगका उस्ताद तो पहलेइच से था पन अब कोइ गालि वालि देनेवाले गैंगका भाइ बनगेला है!"

गन्नुभाई- " अबे वो एक गाली पे पतलुन गिला करने वाला गालि देने वाले गैंगका उस्ताद कैसे बनगेला है?

रिठे काणा- "भाई अपुन भि वहिच सोचरेला था, पन इतनाइच नहिँ है भाई, वो तो साला और भि बहुत कुछ बनगेला है!"

गन्नुभाई- " कौन बनाया रे ये सब उस नासपिटेको?"

रिठे काणा- " भाई वो चौतारि गलिके लोग बनाया भाई!"

गन्नुभाई- " चौतारी गलि वहिच है न जिधर अपुन भि जदउ किया था?"

रिठे काणा- " हाँ भाई वहिच!"

गन्नुभाई- " उधर तो अपुन लंगडेको हफ्ता उठानेके वास्ते भेजा था!"

रिठे काणा- " हाँ भाई लगता है सैरियल लंगडा हफ्ता उठानेके वास्ते गया और उधरिचका बन गेला है!"

गन्नुभाई- " उस किडे लगे बिजकि ऐसि कि तैसि, साला गन्नुभाईसे गद्दारी करके बडा आदमि बनगेला लगता है!"

रिठे काणा- " बिल्कुल भाई! भाई उस रोज भि सैरियलको अपना दाहिना बनया भाई, यहिच दिन देखनेको मिला! भाई मेरेपे डाउट किया भाई! "

गन्नुभाई- " तु ठिक बोला काणे, अपुन गलती किया, पन अपुन आज से तेरेको अपना दाहिना बनाएगा कसमसे! तु अब्बि के अब्बि जा और चौतारी गलिके सबको उठाके ला! एक भि बचनेको ना पाए!"

रिठे काणा- " ठिक है भाई!"

गन्नुभाई- " सब के सबको उठाके लानेका, एक भि छोकरा छोकरि बचा न तो तेरे कनपटिपे कैप्सुल घुसादेगा अपुन! चल फुट् अब्!"

रिठे काणा- " ठिक है भाई! भाई वो.....!"

गन्नुभाई- " क्या है?"

रिठे काणा- " भाई वो....!"

गन्नुभाई- " अबे बक भि भुतनि के! क्या वो?"

रिठे काणा- " भाई वो चौतारी गलीसे अपुन सबको उठाके लायेंगा भाई, पन वो बसन्तीको छोड दो ना भाई!"

गन्नुभाई- " काहे कु? तेरि मौसी लगति है क्या वो छोकरी?"

रिठे काणा- "हेँख हेँख हेँख भाई, वो अपुनको शरम आति है न भाई बोलनेको हेँख हेँख हेँख!"

गन्नुभाई- " अबे कहिँ लाँव वाँव तो नहिँ किया तु मजधारके नाव?"

रिठे काणा- " भाइ अब्बि तक बोल नहिँ सका है अपुन, मवालि है न भाई अपुन, तो बोलनेको डर लगरेला है! पन उसको उठानेको दिल नहिँ किया अपुनका!"

गन्नुभाई- " अबे, धपाकसे आई लाँव यु बोलनेका, छोकरी पटि तो पटि नहिँ तो उठाके लानेका, गन्नुभाईके छोकरा लोगको डरनेका नक्को! समझा तु?"

रिठे काणा- "समझगेला भाई!"

गन्नुभाई- " तो फुट् भि अब्!"

 

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