Posted by: Rahuldai May 31, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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मेरा जीवन कोरा कागज कोरा हाइ रहे गया,
जो लिखा था आशुओं के संग बहे गया।

एक हावा का झोका आया, टुटा डाली से फूल,
न पवन थि न चमन थि , किस कि हे भूल,
कोही गयी खूश्बू हावा मी कुछ ना रहे गया।


 
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