Posted by: ritthe May 20, 2008
~ चौतारी ११६ ~
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यो चाँही हाम्रै दीप ब्रो को तर्फ बाट:


जिम्माल: यह बर्मचारीका आईडिया किस्का था माईबाप?


गन्नु: वही तो खामखा बर्मचारी बनादिया। तुने देखा है न कैसे कैसे दृष्य कुँदा है टुण्डालों मै? कौन है रे वह लोग?
उन्होने ऐसा क्या किया जो मैने नही किया और ऐसी जिन्दगी मिली? काश मै भी उन टुण्डालौंमै होता --

जिम्माल: माँ कसम बहुत नाईन्साफी हुवा है आपके साथ।

गन्नु: ऐसी जिन्दगी भि क्या जिन्दगी, जिम्माल? तंग आगया हु मै खुदकी जिन्दगी से।

जिम्माल: लोल! यह तो आपको पहले ही सोचना चाहिए था --आप तो अजम्मरी हैं --खुदकुसी भी नही कर सकते।



दीप ब्रो ले धेरै धेरै सम्झना अरे है :)
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