Posted by: Birkhe_Maila May 6, 2008
चौतारी- ११३ -- भुल्न सक्या भये मरीजाम :-(
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दीप हठेला- " गन्नुभाई गन्नुभाई, अपुन एकदम झकास् कि खबर लाएला है,सुनेंगा तो भाई आप कडाहिमे डाले जिन्दा मछलिके माफिक उछल पडेंगा!"

गन्नु भाई - " अबे सबर कर, तु काहे को मुजराके बाइके माफिक झुलेला है?"

दीप हठेला- " भाई वो अपुनका रिठे काणा है न भाई, वो आजकल बिन् नाडेकि कछ्छे मे घुमरेला है!"

गन्नु भाई - " अबे झिलके सुखे पत्थर, वो कछ्छा अपुनईच दिएला है, इसमे काहे कु उछलेंगा रे अपुन?"

दीप हठेला- " पन भाई,ऐसे कैसे चलेंगा भाई, भाई कि इज्जत अपुनलोगन कि इज्जत,नाडा  होनेको तो मांगता न भाई?"

गन्नु भाई- " अबे बरसातकि आखिरि बुंद,वो जो बिन नाडेकि कछ्छेमे उछालेला है, वो उसिचका इज्जत उछालेला है,तेरेको क्या वांदा है?"

दीप हठेला- "भाई आप मेरेकु बोला था, अपुन लोग कि इज्जत आप कि इज्जत!तो रिठे काणा जो उछालेला है अपुन सोचा वो अपुनका भि इज्जत उछालरेला है!"

गन्नु भाई- " अबे काजुके निचले हिस्से,नाडा सम्हाल और अपनि इज्जतको पेचान!!...अरे कौन लेके आया रे इसको??? जवानिमे सठिया गया बेचारा!!""

Last edited: 06-May-08 04:41 PM
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