Posted by: norton May 6, 2008
चौतारी- ११३ -- भुल्न सक्या भये मरीजाम :-(
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गन्नु: रिट्ठे, तु काना तो है बहेरा तो नही है न?

रिट्ठे: नही हुँ माइबाप

गन्नु भाई: वो चौतारीया से आज बहुत हि आवाज आ रिया है

रिट्ठे: वो दिपीया हसेली जो आइ है न चौतारीया मे

गन्नु भाई: तो तुने पहेले हि क्यो नही बोला? चल चौतारीया चल्ते है

रिट्ठे: भाई आज ना हि जाये तो अछ्छा है

गन्नु भाई: क्युँ?

रिट्ठे: अब क्या बताउ माइबाप, वो दीप मोबाईल और नेत्रे आप के इज्जतका भुर्ता बना रहेहे।

 

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