Posted by: Deep April 29, 2008
~चौतारी - ११२~
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गन्नु: किसको ले के आया बे? यह तो डिम्पल नही है।
रिट्ठे: यह जिम्माल है, माईबाप।
गन्नु: तो?
रिट्ठे: नई नई शादी हुई है ईस्की, अगर आप कुछ आशिर्बाद वाशिर्बाद दे दे तो ---
गन्नु: खामोश!
रिट्ठे: काहेको भडके बोस?
गन्नु: यह शादी ब्याह से मुझे शख्त नफरत है --
जिम्माल: लोल! ऐसा तो न कहें प्रभो, आपकी बाप ने भो दो दो शादी रचाई थी, उधर बिष्णुकी भी लक्ष्मी है, रामकी सिता, देबता लोग भी शादी ब्याह करतें है, कृष्ण ने तो --

गन्नु: सुन बे लोल, मेरे सामने ना वो कृष्णका नाम फिर से एकबार लिया तो --
रिट्ठे: क्या हुवा बोस, बहुत झुंझला रहे हो आज? पेसर कि सुबह बाली दबा ली?
गन्नु: शुरु से गडबड होरिया है मेरे साथ। नजाने कहाँसे यह हाथीका शर लगबा दिया। देखेते ही लडकियाँ डर जाती हैं। कसम से भैरव नही होते तो डरानेबाला बस हम ही रह जाते। डाईटिङ्गका जमाना है, छोकरी लोग सिक्स प्याक सिक्स प्याक बोलती है और यह देखो हमारा पेट। उपर से लोग कार्ब खिलाने सी बाज नही आते। तंग आगया हुँ मै। कृष्णको बंशी थमा दिया, बजा बजा कि लडकियाँ पटाता गया। मेरे को क्या दिया? यह कुल्हाडी? किसकी पैर पे मारुँ रे रे यह बन्चरो?? ना तो बंशी बजा सकता हुँ इस सुँढ कि बजाह् से, न हीं और कोई खुबी है।

रिट्ठे: बोस, दाँत छुपायो जल्दी से।
गन्नु: क्यों रे?
रिट्ठे: शिरिष आ रहा है। उसे दारा बिलकुल पसन्द नही। उखाड देगा।

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