Posted by: Birkhe_Maila November 5, 2007
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अस्लाम आलेकुम किसनुद्दिन कालेबुर्रहमान!
आप तसरिफ लाए तो इस चौतारी-ए-महफिलमे गु-लए--गुलजारका नुमायश हो गया! मसला यह है हजरात्, कि आप ने इस नाचिजको बेइन्ताह इन्तजार कराया! खैर कोइ मसला नहिँ है, इन्साल्लाह सब सलिके से है। चलिए, शाम-ए-गजल के राग छेडते हैँ!