Posted by: Birkhe_Maila August 22, 2007
MERO KAVITA -RHISHI
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मृदु भावों के अंगुरों कि आज बना लाया हाला प्रियतम अपने हि हाथोँसे आज पिलाऊँगा प्याला पहले भोग लगा लुँ तुझको फिर प्रसाद जग पाएगा सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला!! गजब रहेछ ऋषिजी! हरबँश राय बच्चनको मधुशाला जस्तै फरक यति हो त्यसमा राग थियो यसमा बैराग भेटियो!
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