Posted by: khabardar February 26, 2007
Soooo Happy - Finally I found
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John Galt, I owe you a big one!! You don't have any idea how much I apprecite your posting of the Bhupendar song. I thank you so so very much.. You are my man!! एक् अकेला एक् शहर मे रात मे और दोपहर् मे आबु दाना ढुडता है, आशियाना ढुडता है एक् अकेला एक् शर मे दिन् खाली खाली बरतन् है, और् रात है जैसे अन्धा धुवां, इन स्सुनि अन्धेरी आन्खो से आशु कि जगा आता है धुवाँ जिने कि वजा तो कोइ नहिं मरने का बहाना ढुडता है, ढुडता है, ढुडता है एक् अकेला इस् सहेर में इन उम्र से लम्बी सडको को, मन्जिल् पे पहुचते देखा नहिं बस् दौडती फिरती रहेती है हमने तो ठहरते देखा नहि इस् अजनबी सि शहर् मे जाना पेहेचना ढुडता है,ढुडता है,ढुडता है एक अकेला शहर् मे
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