Posted by: thankeshwor June 1, 2020
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हुजुर आदाब, मेरो २ लाईन सायरी मनपराई गुस्तागु गरिदिनु भएकोमा आभार फर्माए, खासमा मेरो नाम थान्केश्वोर हो, गल्ति ले ठंके भएको हो, फेरी यहाँ भुलसुधारको विकल्प नै थिएन तेसैले स्थाई नाम नै तेही भयो , तपाईका रोचक अनि मार्क्मीक लेखहरुलेनि मलाई मेरो फिद्रत परिबर्तन गर्न केहि हद सम्म सहयोग गर्यो, "सुरुवाल मुताई" को त म दीवाना, परवाना नै भए । सुभरात्रि साथ अर्को एउटा शेर फर्माए
तुमने जो दिल के अँधेरे में जलाया था कभी,
वो दिया आज भी सीने में जला रखा है,
देख आ कर दहकते हुए ज़ख्मों की बहार,
मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है।
-धनुवाद
तुमने जो दिल के अँधेरे में जलाया था कभी,
वो दिया आज भी सीने में जला रखा है,
देख आ कर दहकते हुए ज़ख्मों की बहार,
मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है।
-धनुवाद