syanjali भैया, आप ने जो भाषामे लिखदिया वहि तो बाहुन भाषा है । ये बाहुन भी अजीबका जात है । वो अपना भाषाको बाहुन भाषा नाम देनेको क्यूँ इन्कार करता है मेरे भेजेमे वह बात नहिँ घुसता है । अच्छा ठीक है ब्राम्हण भाषा बोल्दो, वो भी चलेगा, लेकिन नेपाली भाषा कहेना मत । हा हा हा ।
हम थारु है, हमारा भाषा भी थारु, मैथिल जातका लोग मैथिली, गुरुङ, लिम्बु, नेवार, मगर, तमाङ सभिको अपना अपना भाषा में अपना जातको नाम देनेमे कोइ प्रोब्लेम नहिं है, लेकिन बाहुन जो है वो अपना जनमसे बोलते आए भाषाको बाहुन भाषा बोले तो, सला प्रोब्लेम हि प्रोब्लेम । उधर हमार गाँव मे नाजाइज बच्चेको नाम देनेमा बाप दादाको भि वैसन प्रोब्लेम होता है कभि कभि । खेँ खेँ खेँ खेँ । हमारा भाषा तो ३००० साल से थारु भाषा रहा, लेकिन बाहुन लोग तो चालाख है ना, कभि खस बोलता है, कभि पर्वते बोलता है, कभि गोरखा बोलता है, कभि क्या कभि क्या । हिस्ट्री मे तो वैसा हि है ना ??
और bisal123 भैया को इक प्रश्न पुछि हालु - आप ने जो हमको बिहारी थारु कहे दिया, खेँ खेँ खेँ सला सभि बिहारी भि चौंका होगा हँ । बिहारी भैया को सर पे बिठाकर राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति दे दिया, अब प्रधान मन्त्री भि देनेका चक्कर चलरहा है । सला बाहुन नेता ये सब करता है, धरति पुत्र थारु और अन्य जनजातिको बात छोडो, सला किच्चड बाहुन ने दुसरा बाहुन को भी खडे होने नहिँ दिया । ऐसा क्युँ हो रहा है ? सला बिहारी बाहुन लोग ये कर रहे है, और आपका गुस्सा मुझमे ?
इसिलिए मुझे ये मुरख बाहुन लोगों से झिंझक होता है ।