इस जेल के कोतवाल हे स्वयं महादेव रहते हे 100 से अधिक कैदी - Sajha Mobile
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इस जेल के कोतवाल हे स्वयं महादेव रहते हे 100 से अधिक कैदी
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clubmanhattan
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आस्था और विश्वास से जुड़े कई तरह के कहानी-किस्सों के बीच हमारे देश में ऐसी कई जगह हैं, जो अपने आप में काफी अनोखी और अचरज से भरी है, जिनके साथ कोई ना कोई अनूठी विशेषता जुडी होती है। ऐसे ही स्थानों में से एक स्थान ऐसा भी जिसके बारे में सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि क्या किसी जेल में भी कोई खास बात हो सकती है। जी हां, हम आपको रूबरू करा रहे हैं एक ऐसी ही अनोखी जेल और जेल के अनोखे कैदियों से। दरअसल इस जेल की एक खास बात ये है कि यह जेल एक आम जेल नही हैं, बल्कि शिवशंभू महादेव की जेल है। इस जेल की सींखचों के पीछे सौ से भी ज्यादा लोग कैद हैं। man-in-jail भोले बाबा की यह जेल मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा पर मध्यप्रदेश के नीमच शहर के पास स्थित है। यहां के कैदखानों की सलाखों के पीछे कैदी बंधे हुए हैं। वे सभी बैरकों के भीतर ही भजन-कीर्तन गाते हुए झूमते हैं। इसके साथ ही यहां के हर कैदी को एक खास नंबर दिया जाता है। इस अनूठी जेल को भोले की जेल कहा जाता है। यहां स्थित तिलसवां महादेव मंदिर के शिवलिंग को लोग स्वयंभू मानते हैं।यहां के लोगों का कहना है कि यह मंदिर लगभग दो हजार साल पुराना है। यहां शिवजी अपने पूरे परिवार के साथ विराजित हैं। कुछ कैदियों को तो यह कारावास भुगतते हुए सालभर से ऊपर हो गया है। कैदियों से संबंधित पूरी जानकारी यहां के दस्तावेजों में दर्ज की जाती है। जेल में आदमी और औरत दोनों ही नजर आते हैं। यहां की सबसे खास बात यह है कि इस जेल में बंद कैदियों की रिहाई भी जेलर के आदेश के बाद ही होती है और यह जेलर कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि स्वयं शिवशंभू भोलेनाथ हैं। यहां के लोगों का कहना है कि यह मंदिर लगभग दो हजार साल पुराना है। यहां शिवजी अपने पूरे परिवार के साथ विराजित हैं। मंदिर के ठीक सामने गंगाकुंड बना हुआ है। लोक मान्यता है कि यहीं से गंगा नदी का उद्गम हुआ था। लोगों की मान्यता है कि इस कुंड की मिट्टी असाध्य रोगों को ठीक कर सकती है, लेकिन इसके लिए यहां के नीति-नियम मानने होते हैं। भोले की जेल में कैदी बनकर रहना होता है। इसके पीछे लोगों का यह मानना है कि उनके पाप ही उनकी बीमारी का कारण हैं। वे जेल में रहकर प्रायश्चित करते हैं। जब उनके पाप कट जाते हैं तब भोलेनाथ उन्हें स्वस्थ कर देते हैं। अपनी बीमारियों से निजात पाने के लिए सबसे पहले रोगी (यहां कैद अधिकांश लोग मानसिक बीमारियों से पीडि़त नजर आते हैं) मंदिर प्रशासन को एक आवेदन देता है। आवेदन स्वीकार किए जाने के बाद उन्हें कैदी नंबर दिया जाता है। साथ ही किस बैरक में रहना होगा, यह भी बताया जाता है। आवेदन स्वीकार करने के बाद कैदी के खाने-पीने का खर्च मंदिर प्रशासन ही वहन करता है। कैदी को यहां नियमित रूप से कुंड की मिट्टी से स्नान करना होता है और फिर सिर पर पत्थर रखकर मंदिर की पांच परिक्रमा लगाना होती है।मंदिर की साफ-सफाई का काम भी इन कैदियों के बीच ही बंटा होता है। इसी तरह दिन, महीने और साल बीत जाते हैं। कैदी को रिहाई तब ही दी जाती है, जब भोलेनाथ कैदी को स्वप्न में दर्शन देकर ठीक होने की बात कहते हैं। इसके अतिरिक्त यही स्वप्न मंदिर प्रशासन से जुड़े किसी व्यक्ति को भी आता है। स्वप्न सुनने के बाद ही मंदिर प्रशासन कैदी को आजाद करने से संबंधित दस्तावेज बनाता है, तब जाकर कैदी को रिहा किया जाता है। हालांकि यहां की यह पूरी प्रक्रिया बेहद अजीब लगती है और कुछ कैदियों को देखकर लगता है कि इन्हें मानसिक चिकित्सा की आवश्यकता है, लेकिन यहां आए कई लोग दावे के साथ कहते हैं कि उनका परिचित या संबंधी इस जेल से पूरी रह से ठीक होकर गया है और अब वह एक सामान्य इंसान की तरह ही जिंदगी जी रहा है। बहरहाल, हकीकत चाहे जो भी हो, लेकिन इस जगह को देखने के बाद यही लगता है कि जहां आस्था होती है, वहां शक की गुंजाइश नहीं होती और जहां विश्वास होता है, वहां लोगों को सुकून भी मिलता है।

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